
‘‘जिसका यह विश्वास है कि यीशु ही मसीह है, वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है और जो कोई उत्पन्न करने वाले से प्रेम रखता है, वह उससे भी प्रेम रखता है जो उससे उत्पन्न हुआ है’’ (1यूहन्ना 5:1)
बाइबिल का सार एक शब्द में ‘‘प्रेम’’ है। यह हम सभी जानते हैं, परमेश्वर से हम प्रेम रखते हैं। उसकी अभिव्यक्ति है कि हम परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते हुए आपस में एक दूसरे से प्रेम रखें। जब तक प्रेम नहीं होता, रचना नहीं होती, उत्पत्ति नहीं होती। कृति का कविता से प्रेम, कलाकार का कला से प्रेम, स्त्री-पुरूष का आपसी प्रेम, जिससे सुन्दर आदर्श परिवार का निर्माण हो। व्यक्ति का स्वयं के द्वारा चुने गये कार्य के प्रति, प्रेम व समर्पण आस्था जो उसे अपना सर्वोत्तम कर दिखाने को प्रेरित करती हैं।
यह प्रेम न हो तो मनुष्य विध्वसंक हो जाता है। यही कारण है कि आज हम देश में कई एकता- समारोह करते हैं और फिर भी दंगे आतंकवाद और भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है; क्योंकि लोग मसीह से, अपने उद्धारकर्ता से दूर है। यदि वे मसीह को जानते और इसे पहचानते तो उसने जो हमारे लिये सहायक के रूप में पवित्र आत्मा को रख छोड़ा है, वह हमारी सहायता करता कि हम अनंत संबंध के संदर्भ में अपने भाईयों को पहचानते और उनके सामने अपने विश्वास की अभिव्यक्ति के रूप में वह प्रेम बांटते जिससे उनके दिल खोले जायें, छुए जांए और हम आपस में एकता के पवित्र बन्धन में बांधे जाये।
यह प्रेम न हो तो मनुष्य विध्वसंक हो जाता है। यही कारण है कि आज हम देश में कई एकता- समारोह करते हैं और फिर भी दंगे आतंकवाद और भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है; क्योंकि लोग मसीह से, अपने उद्धारकर्ता से दूर है। यदि वे मसीह को जानते और इसे पहचानते तो उसने जो हमारे लिये सहायक के रूप में पवित्र आत्मा को रख छोड़ा है, वह हमारी सहायता करता कि हम अनंत संबंध के संदर्भ में अपने भाईयों को पहचानते और उनके सामने अपने विश्वास की अभिव्यक्ति के रूप में वह प्रेम बांटते जिससे उनके दिल खोले जायें, छुए जांए और हम आपस में एकता के पवित्र बन्धन में बांधे जाये।
एक दूसरे को गिरा कर नहीं पर उठाकर साथ चलें। प्रेम अनंत है, स्थायी है जो बांटने से बढ़ता है, जो संक्रामक है। आप प्रेम बांटेगे तो आप प्रेम पायेंगे, और यही प्रेम एक बेहतर संसार निर्माण करेगा जिसकी योजना परमेश्वर ने बनायी जब उन्होने आदम हव्वा को रचा; सृष्टि के बिगड़ते स्वरूप को देखकर उन्होंने जलप्रलय और आग-गन्धक से इसका नाश किया। फिर दुखी हुए क्योंकि उनका प्रेम महान् है उन्होंने इस समस्या के निवारण के लिए अपने पुत्र का बलिदान इस संसार के लिए दे दिया। हम आज उस पर, उसके प्रेम पर कितना विश्वास करते हैं और हमारी क्या प्रतिक्रिया है?
प्रार्थना :-
प्रार्थना :-
हे पिता, हम जो इस बात को अपनी धरोहर समझ घमण्ड करते हैं कि हम तुझसे उत्पन्न हुए। वर दे कि हम उसके अनुसार आचरण कर, इस संसार को वैसा बनाने का प्रयास करें जैसा आप चाहते है। आमीन।
डॉ. श्रीमती शीला लाल
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