Monday, May 16, 2011

दिल दोषी या दिमाग?


प्रेम में पड़ता है कौन? दिल या दिमाग? नए शोध के मुताबिक तो दोषी संभवतः दिमाग ही है. प्रेम होता है तो मस्तिष्क के 12 क्षेत्र एक साथ सक्रिय हो जाते हैं और डोपामाइन, ऑक्सिटोन, एड्रेनालाइन और वासोप्रेसिन जैसे रसायनों का स्त्राव करने लगते हैं.



प्रेम की अनुभूति मस्तिष्क के उन बौद्धिक क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है जो मेटाफर, बाँडी इमेज और मेंटल रिप्रेजेंटेशन जैसी जटिल बोध क्रियाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं. शोध में यह भी पता चला कि विभिन्न प्रकार का प्रेम अनुभव करने पर मस्तिष्क के कुछ हिस्से किस तरह सक्रिय हो जाते हैं. बीच मस्तिष्क में मौजूद दर्द और खुशी के केंद्र विभिन्न तरह के प्रेम के लिए विभिन्न गतिविधियों का प्रदर्शन करते हैं.

Sunday, May 1, 2011

प्रेम

प्रेम दुनिया का सबसे खुबसूरत एहसास है ...
जितनी परिभाषाये प्रेम की है उतनी दुनिया में किसी भी दूसरे मनोभाव की नहीं है....
ये वह एहसास है जिसे मानव ही नहीं पशु-पछी,पेड़-पौधे भी समझते है
प्रेम अभिव्यक्ति है --आनंद की,मधुरता की,सौंदर्य की,,
प्रेम वियोग है,त्याग है,समर्पण है .....
प्रेम कभी आंसुओ में छिपी मुस्कान जैसा है तो कभी मुस्कान में छिपे आंसुओ जैसा है..



प्रेम,
बहुआयामी,
बहुमूल्य है,
यह है जहाँ,
होता वही पर स्वर्ग है

प्रेम... बाइबिल अनुसार



‘जिसका यह विश्‍वास है कि यीशु ही मसीह है, वह परमेश्‍वर से उत्‍पन्‍न हुआ है और जो कोई उत्‍पन्‍न करने वाले से प्रेम रखता है, वह उससे भी प्रेम रखता है जो उससे उत्‍पन्‍न हुआ है’’ (1यूहन्‍ना 5:1)
बाइबिल का सार एक शब्‍द में ‘‘प्रेम’’ है। यह हम सभी जानते हैं, परमेश्‍वर से हम प्रेम रखते हैं। उसकी अभिव्‍यक्ति है कि हम परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते हुए आपस में एक दूसरे से प्रेम रखें। जब तक प्रेम नहीं होता, रचना नहीं होती, उत्‍पत्ति नहीं होती। कृति का कविता से प्रेम, कलाकार का कला से प्रेम, स्‍त्री-पुरूष का आपसी प्रेम, जिससे सुन्‍दर आदर्श परिवार का निर्माण हो। व्‍यक्ति का स्‍वयं के द्वारा चुने गये कार्य के प्रति, प्रेम व समर्पण आस्‍था जो उसे अपना सर्वोत्‍तम कर दिखाने को प्रेरित करती हैं।

यह प्रेम न हो तो मनुष्‍य विध्‍वसंक हो जाता है। यही कारण है कि आज हम देश में कई एकता- समारोह करते हैं और फिर भी दंगे आतंकवाद और भ्रष्‍टाचार बढ़ता जा रहा है; क्‍योंकि लोग मसीह से, अपने उद्धारकर्ता से दूर है। यदि वे मसीह को जानते और इसे पहचानते तो उसने जो हमारे लिये सहायक के रूप में पवित्र आत्‍मा को रख छोड़ा है, वह हमारी सहायता करता कि हम अनंत संबंध के संदर्भ में अपने भाईयों को पहचानते और उनके सामने अपने विश्‍वास की अभिव्‍यक्ति के रूप में वह प्रेम बांटते जिससे उनके दिल खोले जायें, छुए जांए और हम आपस में एकता के पवित्र बन्‍धन में बांधे जाये। 
एक दूसरे को गिरा कर नहीं पर उठाकर साथ चलें। प्रेम अनंत है, स्‍थायी है जो बांटने से बढ़ता है, जो संक्रामक है। आप प्रेम बांटेगे तो आप प्रेम पायेंगे, और यही प्रेम एक बेहतर संसार निर्माण करेगा जिसकी योजना परमेश्‍वर ने बनायी जब उन्‍होने आदम हव्‍वा को रचा; सृष्टि के बिगड़ते स्‍वरूप को देखकर उन्‍होंने जलप्रलय और आग-गन्‍धक से इसका नाश किया। फिर दुखी हुए क्‍योंकि उनका प्रेम महान् है उन्‍होंने इस समस्‍या के निवारण के लिए अपने पुत्र का बलिदान इस संसार के‍ लिए दे दिया। हम आज उस पर, उसके प्रेम पर कितना विश्‍वास करते हैं और हमारी क्‍या प्रतिक्रिया है?

प्रार्थना :-
हे पिता, हम जो इस बात को अपनी धरोहर समझ घमण्‍ड करते हैं कि हम तुझसे उत्‍पन्‍न हुए। वर दे कि हम उसके अनुसार आचरण कर, इस संसार को वैसा बनाने का प्रयास करें जैसा आप चाहते है। आमीन।
डॉ. श्रीमती शीला लाल 

प्यार ...



प्रेम के बदले प्रेम.....

एक बच्चा रोज अपने घर के पास के एक पेड़ के नीचे खेलने आता था। कभी वह पेड़ के चारों ओर घूमता, कभी नाचता। धीरे-धीरे उस पेड़ को बच्चे से प्रेम हो गया। अब पेड़ भी अपनी शाखाओं को नीचे कर देता ताकि उसकी नर्म पत्तियां उसके लाड़ले को सहला सकें और बच्चा उसकी शाखाओं पर लटक कर खेल सके। 
बच्चा बड़ा होने लगा। वह कभी फूल तोड़ता, तो कभी फल खाता। कभी उसके फूलों का ताज पहन कर खुश होता। समय निरंतर बहता रहा। बच्चे का आना धीरे-धीरे कम होने लगा। फिर भी, जब कभी वह आता और उसकी शाखाओं पर चढ़ कर जोर-जोर से झूलता तो वृक्ष को बहुत खुशी होती।
फिर वह कभी आता, कभी नहीं आता। प्रेम एक प्रतीक्षा है। पेड़ की शाखाएं मन ही मन पुकारतीं, ओ मेरे बच्चे, मेरे पास आओ। पर लड़के की दुनिया फैल रही थी। वह पेड़ की परिधि से बाहर निकल रहा था। लंबे समय के बाद एक बार वह उस वृक्ष के पास आया। उस पेड़ की शाखाएं बोलीं, आओ हम तुम्हें याद करते हैं। 

लड़का बोला, समय बदल गया है। अब मुझे पैसों की जरूरत होती है। उसके लिए मुझे कई जगहों पर जाना पड़ता है। तुम्हारे पास मैं कैसे और कब आऊं, तुम मुझे क्या पैसे दे सकते हो? पेड़ असमंजस में पड़ गया कि मैं तुम्हें पैसा कैसे दे सकता हूं। पैसा तो मनुष्य के पास होता है, पर मैं मनुष्य नहीं हूं। मेरे पास तो ऐसा कुछ भी नहीं है। हां, तुम मेरे फल तोड़ लो, उसे बेच कर तुम पैसा पा सकते हो
लड़के ने वैसा ही किया। उसने बहुत सारे कच्चे- पक्के फल तोड़ लिए। इस कोशिश में पेड़ की कुछ शाखाएं भी टूट गईं। किंतु पेड़ खुश था कि वह जिसको प्रेम करता है उसके काम आया।
छोटा बच्चा जो अब बड़ा हो चुका था, वह फल बेचकर पैसा कमाने लगा। इस कोशिश में वह फिर उस पेड़ को भूल गया। और पेड़ फिर बेचैन होने लगा। उसकी शाखाएं फिर हवाओं को संदेश देने लगीं। इस बीच वह लड़का एक प्रौढ़ आदमी बन गया।

एक दिन घूमता हुआ वह पेड़ के पास से गुजरा, तो पेड़ ने उसे पुकारा, तुम तो मुझे भूल ही गए। मैं तुम्हें कितना याद करता हूं। उसने कहा, कैसे आऊं तुम्हारे पास, मुझे घर बनाना है। पेड़ बोला, हां, मनुष्य तो घर में ही रहते हैं। मैं खुली हवाओं में रहता हूं, इसलिए मुझे उसके महत्व का अंदाजा नहीं होता। किंतु तुम्हें तो चाहिए ही। तुम ऐसा करो कि मेरी शाखाएं काट लो। इससे शायद तुम्हारा घर बन जाए।
उसने आरी से पेड़ काट डाला। पेड़ एक ठूंठ बन कर रह गया , किंतु वह खुश था कि जिसको वह प्रेमकरता है उसके काम आया। वह लकड़ी लेकर गया और एक आलीशान घर बनाया।
लेकिन कुछ दिनों बाद वह आदमी फिर उस ठूंठ बने पेड़ के पास लौटा। कहने लगा , मैं ने तुम्हारासब कुछ ले लिया , फिर भी तुम सोच रहे हो कि आज मुझे कुछ नहीं दे पाओगे। पर आज मैं कुछलेने नहीं आया क्षमा मांगने आया हूं तुम से। पेड़ ने कहा , प्रेम के बदले प्रेम दे सकते हो तो दो ,मेरे पास क्षमा नहीं है। वह उस ठूंठ से चिपक गया और रोने लगा क्योंकि अब वह खुद बूढ़ा हो रहाथा और बच्चों की नजर में ठूंठ हो गया था। 

आज उसने उस ठूंठ के पास नन्हा पौधा लगाया और बोला , यह नन्हा पौधा 
तुम्हारा  अस्तित्व बनेगा ..
किंतु तुम इसे किसी से प्रेम करना मत सिखाना। वृक्ष बोला , पर यही तो हमारी प्रकृति है। हमें तो प्रेम देना ही है , चाहे हमारा अस्तित्व समाप्त ही क्यूं न हो जाए। 

Saturday, April 30, 2011

प्रेम..एक भावना

प्रेम एक शब्द नहीं, बल्कि एक भावना है, अहसास है। यह जब दिल में
उपजता है, तो सुख-दुख, लाभ-हानि, मान-अपमान, अपना-पराया का भेद मिटा देता है। प्रेम सबके लिए हर समय एक जैसा रहना चाहिए। प्रेम में लेने का नहीं, बल्कि सिर्फ देने का भाव होता है।

एक प्रेम ही ऐसा है जिससे दुश्मन भी अपने हो जाते हैं। बिना प्रेम का जीवन तो नीरस है। प्रेम है तो खुशी है और जब खुशी होती है तो चेहरे पर मुस्कराहट बनी रहती है। जब मन प्रेम से भरता है तो दिनभर के सभी कामों में प्रेम झलकने लगता है। फिर चलना-फिरना, खाना-पीना, देखना, बोलना सब प्रेममय हो जाता है।

प्रेम है तो हम जीवन जीते हैं, नहीं तो काटते हैं। आसपास के सभी लोगों का अच्छी तरह ध्यान रखना और सबके लिए अच्छी भावना रखना ही प्रेम है। आज घर-घर में कलह की वजह आपस में प्यार न होना ही तो है। अहंकार की वजह से किसी की जरा-सी बात भी बर्दाश्त नहीं कर पाते क्योंकि जब अहंकार जागता है, तो भीतर का प्रेम दूर भाग जाता है।

आपस में मतभेद होना बुरा नहीं लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए क्योंकि मनभेद ही घर को नरक बना देता है। प्रेम से ही घर को स्वर्ग बनाया जा सकता है। अगर मन में प्रेम है तो वह कभी ठहरेगा नहीं, क्योंकि प्रेम हमेशा बहता रहता है और बहकर अपनी जगह खुद बना लेता है।

अगर हम ध्यान दें तो एक शख्स का जीवन में गिने-चुने लोगों से ही द्वेष होता है। अगर पूरी मेहनत करके वहां प्रेम पैदा कर दिया जाए, जीवन खुशियों से भर सकता है।



By. Yogacharya Surakshit Goswami

Thursday, April 28, 2011

क्यों रोने का मन किया...



आज न जाने क्यों रोने का मन किया ..
माँ के आंचल में सर छुपा कर सोने का मन किया..
दुनिया की भाग दौड़ में खो चुके थे रिश्ते सब..
आज न जाने क्यों उन सारे रिश्तों को एक सिरे से संजोने का मन किया

किसी दिन भीड़ में देखी थी किसी की आँखें ..
आज फिर उन आँखों में खोने का मन किया ..
रोज सपनों से बातें करता था मैं ..
आज उन सपनों से मुह मोड़ने को मन क्या..


झूठ बोलता हूँ अपने आप से रोज़ मै..
आज न जाने क्यों अपने आप से सच बोलने का मन किया..
दिल तोड़ता हूँ अपनी बातों से सबका मैं..
आज न जाने क्यों किसी का दिल जोड़ने का मन किया..


आज न जाने क्यों रोने का मन किया!!!

Wednesday, April 27, 2011

मेरी माँ...



गंगा किनारे एक ढपली वाला रोज ढपली बजाया करता था. वो जैसे ही ढपली बजाना शुरू करता एक हिरन का बच्चा वहां आ जाया करता था....
ये क्रम रोज चला...


एक दिन उस ढपली वाले ने उस हिरन के बच्चे से पूछा की तुम रोज यहाँ आकर मेरी ढपली सुनते हो क्या मैं इतना अच्छा बजाता हूँ...
बच्चे ने मना कर दिया..


उसने पूछा तुम मुझसे सीखना चाहते हो ढपली बजाना ?  बच्चे ने फिर मना कर दिया..


तो उत्सुकता वश ढपली वादक ने पूछा तुम फिर रोज-रोज क्यों आ जाते हो..?


उस हिरन के बच्चे ने उत्तर दिया की जो ढपली तुम बजा रहे हो उसमे जो खाल लगी हैं वो मेरी माँ की हैं. 
तुम जब भी इसे बजाते हो मुझे मेरी माँ की याद आ जाती हैं.  


मैं इसलिए चला आता हूँ...

Saturday, April 23, 2011

तुम ...


सुनती हो ...
तुम  मुझे अच्छी लगती हो

कुछ चंचल सी,कुछ चुप सी
थोड़ी पागल लगती हो

तुम मुझे अच्छी लगती हो


है चाहने वाले बहुत
पर तुम मै बात है कुछ अलग

तुम अपनी सी लगती हो
वो कहते कहते रुक जाना
बैठे बैठे कही खो जाना



कुछ उलझन मे रहती हो ...

तुम मुझे अच्छी लगती हो ...

प्रेम..

जिसे तुम प्रेम कहते हो--यह बांटना नहीं है, यह झपटना है।

तुम्हें प्रेम का अर्थ बदलना होगा। यह ऐसी बात नहीं है कि तुम किसी दूसरे से इसे लेने की कोशिश कर रहे हो। और यह प्रेम का सारा इतिहास रहा है; सभी दूसरे से, जितना हो सके उतना, इसे लेने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों ही लेने की कोशिश कर रहे हैं, और स्वाभाविक ही, किसी को भी कुछ भी नहीं मिल रहा है। 



प्रेम कोई ऐसी बात नहीं है कि जिसे लिया जा सके। प्रेम तो देने की बात है। लेकिन तुम तब ही दे सकते हो जब तुम्हारे पास यह हो। क्या तुम्हारे भीतर प्रेम है? क्या तुमने कभी यह प्रश्न पूछा है? मौन बैठ कर, तुमने कभी देखा है? तुम्हारे पास कोई प्रेम की ऊर्जा है देने के लिए?

तुम्हारे पास नहीं है, न ही किसी दूसरे पास है। तब तुम प्रेम संबंध में फंस जाते हो। दोनो ही दिखावा कर रहे हैं, दिखावा कर रहे हैं कि वे तुम्हें स्वर्ग देंगे। दोनों ही एक-दूसरे को भरोसा दिला रहे हैं कि "एक बार तुम मेरे साथ शादी कर लोगे, हमारी रातें हजारों अरेबीयन रातों को भुला देंगी, हमारे दिन स्वर्णिम होंगे।'


लेकिन तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पास देने को कुछ भी नहीं है। ये सारी बातें जो तुम कह रहे हो वह लेने के लिए हैं। और दूसरा भी यही बात कर रहा है। एक बार तुम शादी कर लेते हो, तब वहां निश्चित ही परेशानी होने वाली है ; दोनों ही हजारों अरेबिनयन रातों का इंतजार कर रहे हैं और एक भारतीय रात भी नहीं घट रही है! तब गुस्सा है, रोष है जो धीरे-धीरे जहरीला बन जाता है।


प्रेम का नफरत में बदल जाना बहुत सरल सी घटना है, क्योंकि सभी महसूस करते हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है। तुम समुद्र किनारे, सिनेमा हॉल में, नृत्य स्थल पर एक चेहरा बताते हो। आधे या एक घंटे के लिए समुद्र किनारे बैठे हुए एक-दूसरे का हाथ हाथ में लिए आने वाले सुंदर जीवन के सपने देखना एक बात है। लेकिन एक बार जब तुम शादी कर लेते हो, वह सब तुम अपेक्षा कर रहे थे, सपने देख रहे थे, वाष्पीभूत होने लगेंगे।



मेरा तुम्हें यह सुझाव है कि : ध्यान करो। अधिक से अधिक शांत होओ, मौन होओ, स्थिर होओ। अपने भीतर शांति को पैदा होने दो। वह हजारों तरह से तुम्हें मदद करेगा...सिर्फ प्रेम में ही नहीं, यह तुम्हें अधिक सुंदर मूर्ति बनाने में भी मदद करेगा। क्योंकि जो व्यक्ति मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकता; वह कैसे सृजन कर सकता है? वह क्या सृजन करेगा ? प्रेमविहिन हृदय वास्तविक सृजनशील नहीं हो सकता। वह ध्यान कर सकता है, लेकिन वह सृजन नहीं कर सकता।
सारा सृजन प्रेम, समझ और मौन है।



Osho...

दो तरीके.......





उसे  मुहब्बत  करना  नहीं  आता और  मुझे  मुहब्बत  के  सिवा  कुछ  नहीं  आता

ज़िन्दगी  गुज़ारने  के  बस  यही दो  तरीके  हैं  एक  उसे  नहीं  आता  एक  मुझे  नहीं  आता ......

Friday, April 22, 2011

राज...


राज दिल का दिल में छुपाते है वो..

सामने आ जाये तो नज़र झुकाते हैं वो...

बात होती नहीं या वो करते नहीं, नहीं जानते....
पर शुक्र है जब भी मिलते है मुस्कुराते है वो....

आदत...

सोचते थे पानी से जुदा होकर ये मछलियाँ क्यों छटपटाती हैं ??

न मालूम था...

नजदीकियां आदत और आदत जिंदगी बन जाती हैं.....

कुछ नया....

आज कुछ नया करने की उम्मीद में ये ब्लॉग लिखने की कोशिश का रहा हूँ ..
इस ब्लॉग में बहुत कुछ मैंने नहीं लिखा है..
बस एक गुलदस्ता बनाने की कोशिश की है...
मै इस में कितना कामयाब हुआ हूँ   ये तो  आप लोगो को ही बताना है..