Saturday, April 30, 2011

प्रेम..एक भावना

प्रेम एक शब्द नहीं, बल्कि एक भावना है, अहसास है। यह जब दिल में
उपजता है, तो सुख-दुख, लाभ-हानि, मान-अपमान, अपना-पराया का भेद मिटा देता है। प्रेम सबके लिए हर समय एक जैसा रहना चाहिए। प्रेम में लेने का नहीं, बल्कि सिर्फ देने का भाव होता है।

एक प्रेम ही ऐसा है जिससे दुश्मन भी अपने हो जाते हैं। बिना प्रेम का जीवन तो नीरस है। प्रेम है तो खुशी है और जब खुशी होती है तो चेहरे पर मुस्कराहट बनी रहती है। जब मन प्रेम से भरता है तो दिनभर के सभी कामों में प्रेम झलकने लगता है। फिर चलना-फिरना, खाना-पीना, देखना, बोलना सब प्रेममय हो जाता है।

प्रेम है तो हम जीवन जीते हैं, नहीं तो काटते हैं। आसपास के सभी लोगों का अच्छी तरह ध्यान रखना और सबके लिए अच्छी भावना रखना ही प्रेम है। आज घर-घर में कलह की वजह आपस में प्यार न होना ही तो है। अहंकार की वजह से किसी की जरा-सी बात भी बर्दाश्त नहीं कर पाते क्योंकि जब अहंकार जागता है, तो भीतर का प्रेम दूर भाग जाता है।

आपस में मतभेद होना बुरा नहीं लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए क्योंकि मनभेद ही घर को नरक बना देता है। प्रेम से ही घर को स्वर्ग बनाया जा सकता है। अगर मन में प्रेम है तो वह कभी ठहरेगा नहीं, क्योंकि प्रेम हमेशा बहता रहता है और बहकर अपनी जगह खुद बना लेता है।

अगर हम ध्यान दें तो एक शख्स का जीवन में गिने-चुने लोगों से ही द्वेष होता है। अगर पूरी मेहनत करके वहां प्रेम पैदा कर दिया जाए, जीवन खुशियों से भर सकता है।



By. Yogacharya Surakshit Goswami

Thursday, April 28, 2011

क्यों रोने का मन किया...



आज न जाने क्यों रोने का मन किया ..
माँ के आंचल में सर छुपा कर सोने का मन किया..
दुनिया की भाग दौड़ में खो चुके थे रिश्ते सब..
आज न जाने क्यों उन सारे रिश्तों को एक सिरे से संजोने का मन किया

किसी दिन भीड़ में देखी थी किसी की आँखें ..
आज फिर उन आँखों में खोने का मन किया ..
रोज सपनों से बातें करता था मैं ..
आज उन सपनों से मुह मोड़ने को मन क्या..


झूठ बोलता हूँ अपने आप से रोज़ मै..
आज न जाने क्यों अपने आप से सच बोलने का मन किया..
दिल तोड़ता हूँ अपनी बातों से सबका मैं..
आज न जाने क्यों किसी का दिल जोड़ने का मन किया..


आज न जाने क्यों रोने का मन किया!!!

Wednesday, April 27, 2011

मेरी माँ...



गंगा किनारे एक ढपली वाला रोज ढपली बजाया करता था. वो जैसे ही ढपली बजाना शुरू करता एक हिरन का बच्चा वहां आ जाया करता था....
ये क्रम रोज चला...


एक दिन उस ढपली वाले ने उस हिरन के बच्चे से पूछा की तुम रोज यहाँ आकर मेरी ढपली सुनते हो क्या मैं इतना अच्छा बजाता हूँ...
बच्चे ने मना कर दिया..


उसने पूछा तुम मुझसे सीखना चाहते हो ढपली बजाना ?  बच्चे ने फिर मना कर दिया..


तो उत्सुकता वश ढपली वादक ने पूछा तुम फिर रोज-रोज क्यों आ जाते हो..?


उस हिरन के बच्चे ने उत्तर दिया की जो ढपली तुम बजा रहे हो उसमे जो खाल लगी हैं वो मेरी माँ की हैं. 
तुम जब भी इसे बजाते हो मुझे मेरी माँ की याद आ जाती हैं.  


मैं इसलिए चला आता हूँ...

Saturday, April 23, 2011

तुम ...


सुनती हो ...
तुम  मुझे अच्छी लगती हो

कुछ चंचल सी,कुछ चुप सी
थोड़ी पागल लगती हो

तुम मुझे अच्छी लगती हो


है चाहने वाले बहुत
पर तुम मै बात है कुछ अलग

तुम अपनी सी लगती हो
वो कहते कहते रुक जाना
बैठे बैठे कही खो जाना



कुछ उलझन मे रहती हो ...

तुम मुझे अच्छी लगती हो ...

प्रेम..

जिसे तुम प्रेम कहते हो--यह बांटना नहीं है, यह झपटना है।

तुम्हें प्रेम का अर्थ बदलना होगा। यह ऐसी बात नहीं है कि तुम किसी दूसरे से इसे लेने की कोशिश कर रहे हो। और यह प्रेम का सारा इतिहास रहा है; सभी दूसरे से, जितना हो सके उतना, इसे लेने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों ही लेने की कोशिश कर रहे हैं, और स्वाभाविक ही, किसी को भी कुछ भी नहीं मिल रहा है। 



प्रेम कोई ऐसी बात नहीं है कि जिसे लिया जा सके। प्रेम तो देने की बात है। लेकिन तुम तब ही दे सकते हो जब तुम्हारे पास यह हो। क्या तुम्हारे भीतर प्रेम है? क्या तुमने कभी यह प्रश्न पूछा है? मौन बैठ कर, तुमने कभी देखा है? तुम्हारे पास कोई प्रेम की ऊर्जा है देने के लिए?

तुम्हारे पास नहीं है, न ही किसी दूसरे पास है। तब तुम प्रेम संबंध में फंस जाते हो। दोनो ही दिखावा कर रहे हैं, दिखावा कर रहे हैं कि वे तुम्हें स्वर्ग देंगे। दोनों ही एक-दूसरे को भरोसा दिला रहे हैं कि "एक बार तुम मेरे साथ शादी कर लोगे, हमारी रातें हजारों अरेबीयन रातों को भुला देंगी, हमारे दिन स्वर्णिम होंगे।'


लेकिन तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पास देने को कुछ भी नहीं है। ये सारी बातें जो तुम कह रहे हो वह लेने के लिए हैं। और दूसरा भी यही बात कर रहा है। एक बार तुम शादी कर लेते हो, तब वहां निश्चित ही परेशानी होने वाली है ; दोनों ही हजारों अरेबिनयन रातों का इंतजार कर रहे हैं और एक भारतीय रात भी नहीं घट रही है! तब गुस्सा है, रोष है जो धीरे-धीरे जहरीला बन जाता है।


प्रेम का नफरत में बदल जाना बहुत सरल सी घटना है, क्योंकि सभी महसूस करते हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है। तुम समुद्र किनारे, सिनेमा हॉल में, नृत्य स्थल पर एक चेहरा बताते हो। आधे या एक घंटे के लिए समुद्र किनारे बैठे हुए एक-दूसरे का हाथ हाथ में लिए आने वाले सुंदर जीवन के सपने देखना एक बात है। लेकिन एक बार जब तुम शादी कर लेते हो, वह सब तुम अपेक्षा कर रहे थे, सपने देख रहे थे, वाष्पीभूत होने लगेंगे।



मेरा तुम्हें यह सुझाव है कि : ध्यान करो। अधिक से अधिक शांत होओ, मौन होओ, स्थिर होओ। अपने भीतर शांति को पैदा होने दो। वह हजारों तरह से तुम्हें मदद करेगा...सिर्फ प्रेम में ही नहीं, यह तुम्हें अधिक सुंदर मूर्ति बनाने में भी मदद करेगा। क्योंकि जो व्यक्ति मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकता; वह कैसे सृजन कर सकता है? वह क्या सृजन करेगा ? प्रेमविहिन हृदय वास्तविक सृजनशील नहीं हो सकता। वह ध्यान कर सकता है, लेकिन वह सृजन नहीं कर सकता।
सारा सृजन प्रेम, समझ और मौन है।



Osho...

दो तरीके.......





उसे  मुहब्बत  करना  नहीं  आता और  मुझे  मुहब्बत  के  सिवा  कुछ  नहीं  आता

ज़िन्दगी  गुज़ारने  के  बस  यही दो  तरीके  हैं  एक  उसे  नहीं  आता  एक  मुझे  नहीं  आता ......

Friday, April 22, 2011

राज...


राज दिल का दिल में छुपाते है वो..

सामने आ जाये तो नज़र झुकाते हैं वो...

बात होती नहीं या वो करते नहीं, नहीं जानते....
पर शुक्र है जब भी मिलते है मुस्कुराते है वो....

आदत...

सोचते थे पानी से जुदा होकर ये मछलियाँ क्यों छटपटाती हैं ??

न मालूम था...

नजदीकियां आदत और आदत जिंदगी बन जाती हैं.....

कुछ नया....

आज कुछ नया करने की उम्मीद में ये ब्लॉग लिखने की कोशिश का रहा हूँ ..
इस ब्लॉग में बहुत कुछ मैंने नहीं लिखा है..
बस एक गुलदस्ता बनाने की कोशिश की है...
मै इस में कितना कामयाब हुआ हूँ   ये तो  आप लोगो को ही बताना है..