Saturday, April 23, 2011

प्रेम..

जिसे तुम प्रेम कहते हो--यह बांटना नहीं है, यह झपटना है।

तुम्हें प्रेम का अर्थ बदलना होगा। यह ऐसी बात नहीं है कि तुम किसी दूसरे से इसे लेने की कोशिश कर रहे हो। और यह प्रेम का सारा इतिहास रहा है; सभी दूसरे से, जितना हो सके उतना, इसे लेने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों ही लेने की कोशिश कर रहे हैं, और स्वाभाविक ही, किसी को भी कुछ भी नहीं मिल रहा है। 



प्रेम कोई ऐसी बात नहीं है कि जिसे लिया जा सके। प्रेम तो देने की बात है। लेकिन तुम तब ही दे सकते हो जब तुम्हारे पास यह हो। क्या तुम्हारे भीतर प्रेम है? क्या तुमने कभी यह प्रश्न पूछा है? मौन बैठ कर, तुमने कभी देखा है? तुम्हारे पास कोई प्रेम की ऊर्जा है देने के लिए?

तुम्हारे पास नहीं है, न ही किसी दूसरे पास है। तब तुम प्रेम संबंध में फंस जाते हो। दोनो ही दिखावा कर रहे हैं, दिखावा कर रहे हैं कि वे तुम्हें स्वर्ग देंगे। दोनों ही एक-दूसरे को भरोसा दिला रहे हैं कि "एक बार तुम मेरे साथ शादी कर लोगे, हमारी रातें हजारों अरेबीयन रातों को भुला देंगी, हमारे दिन स्वर्णिम होंगे।'


लेकिन तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पास देने को कुछ भी नहीं है। ये सारी बातें जो तुम कह रहे हो वह लेने के लिए हैं। और दूसरा भी यही बात कर रहा है। एक बार तुम शादी कर लेते हो, तब वहां निश्चित ही परेशानी होने वाली है ; दोनों ही हजारों अरेबिनयन रातों का इंतजार कर रहे हैं और एक भारतीय रात भी नहीं घट रही है! तब गुस्सा है, रोष है जो धीरे-धीरे जहरीला बन जाता है।


प्रेम का नफरत में बदल जाना बहुत सरल सी घटना है, क्योंकि सभी महसूस करते हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है। तुम समुद्र किनारे, सिनेमा हॉल में, नृत्य स्थल पर एक चेहरा बताते हो। आधे या एक घंटे के लिए समुद्र किनारे बैठे हुए एक-दूसरे का हाथ हाथ में लिए आने वाले सुंदर जीवन के सपने देखना एक बात है। लेकिन एक बार जब तुम शादी कर लेते हो, वह सब तुम अपेक्षा कर रहे थे, सपने देख रहे थे, वाष्पीभूत होने लगेंगे।



मेरा तुम्हें यह सुझाव है कि : ध्यान करो। अधिक से अधिक शांत होओ, मौन होओ, स्थिर होओ। अपने भीतर शांति को पैदा होने दो। वह हजारों तरह से तुम्हें मदद करेगा...सिर्फ प्रेम में ही नहीं, यह तुम्हें अधिक सुंदर मूर्ति बनाने में भी मदद करेगा। क्योंकि जो व्यक्ति मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकता; वह कैसे सृजन कर सकता है? वह क्या सृजन करेगा ? प्रेमविहिन हृदय वास्तविक सृजनशील नहीं हो सकता। वह ध्यान कर सकता है, लेकिन वह सृजन नहीं कर सकता।
सारा सृजन प्रेम, समझ और मौन है।



Osho...

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