गंगा किनारे एक ढपली वाला रोज ढपली बजाया करता था. वो जैसे ही ढपली बजाना शुरू करता एक हिरन का बच्चा वहां आ जाया करता था....
ये क्रम रोज चला...
एक दिन उस ढपली वाले ने उस हिरन के बच्चे से पूछा की तुम रोज यहाँ आकर मेरी ढपली सुनते हो क्या मैं इतना अच्छा बजाता हूँ...
बच्चे ने मना कर दिया..
उसने पूछा तुम मुझसे सीखना चाहते हो ढपली बजाना ? बच्चे ने फिर मना कर दिया..
तो उत्सुकता वश ढपली वादक ने पूछा तुम फिर रोज-रोज क्यों आ जाते हो..?
उस हिरन के बच्चे ने उत्तर दिया की जो ढपली तुम बजा रहे हो उसमे जो खाल लगी हैं वो मेरी माँ की हैं.
तुम जब भी इसे बजाते हो मुझे मेरी माँ की याद आ जाती हैं.
मैं इसलिए चला आता हूँ...
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